दिल्ली के साप्ताहिक बाज़ार में
दिल्ली के साप्ताहिक बाज़ार में
आज मैं दिल्ली के साप्ताहिक बाज़ार गया!
पहले तो ख्याल यह आया काश! तुम होती मेरे साथ,
पर कोई नहीं, होगी किसी दिन साथ
ग़र नियति में लिखी होगी तो!
फिर मैं सोचा ले लूँ तुम्हारे लिए सबकुछ !
बिंदी ले लूँ, कंगन ले लूँ
हरी - हरी चूड़ियाँ ले लूँ!
जिसकी खनक से मेरे घर- आँगन को संगीतमय कर दो!
सलवार -समीज ले लूँ!
जूती ले लूँ! अंगूठी ले लूँ!
या तुम्हारे लिए सुन्दर टिकाऊ सा खूबसूरत पर्स या थैला ले लूँ !
बालों में लगाने वाला तरह-तरह के सुन्दर रंग- बिरंगी जुड़े ले लूँ, गजरा लूँ!
जिसे तुम अपनी बालों में लगाकर सबसे ज्यादा मेरे लिए खूबसूरत दिखो,
वैसे खूबसूरती इन सब चीजों से नहीं मिलती
पर इन सब छोटी-छोटी चीज़ों को खरीदने और पहनने वाला सच्चे दिल से
आत्मीयता से भरे पूरी शिद्दत से इसमें खुशियां ढूंढे तो
इसमें खूबसूरती का अपरिमित स्तर है!
ये सारी चीजें मेरे जेहन में चल रहीं थीं!
तभी मुझे याद आया कि इन सारी चीजों को कभी- न-कभी तुम्हारे लिए लाया ही हूँ!
उसी वक्त मेरी नज़र गले की एक खूबसूरत प्यारा-सा "हार" पर पड़ी !
मेरी नज़र हट नहीं रहीं थीं उस हार से,
पर कैसे उसे खरीद पाता ?
साथ थे मेरे रिश्तेदार लोग!
मन बहुत व्याकुल हो रहा था,
जी मचल रहा था कि इसे कैसे भी ले लूँ!
दाम भी पूछ लिया, पैसे भी उपलब्ध थे!
मगर उन लोगों को अभी क्या जवाब देता की ये किसके लिए खरीद रहा हूं, मैं ?
अंततः किसी भी तरह छुप- छुपाकर उस हार को खरीदने में आखिर मैंने हार नहीं ही मानी!
तब जाकर जान में जान आया!
धड़कने शांत हुई!
दिल को राहत पहुंची !
ये हार तुम्हारे इस जन्मदिन का हम और तुम यानी हम दोनों के तरफ से सप्रेम भेंट है!

