दिल पागल हैं
दिल पागल हैं
मैं क्यूं उससे इतना प्यार करता हूँ,
मैं क्यूं उसपे इतना मरता हूँ,
मैं क्यूं उसपे सब कुछ अर्पित करता हूँ,
मेरा दिल ही पागल हैं,
दिल मेरा दीवाना हैं,
आशिक़ी उसी से करता हैं,
उसी पे जान छिड़कता हैं,
सपनों में भी उसी का नाम लेता हैं,
सब कुछ उसी पे अर्पित करता हैं,
उसी से ही प्यार करता हैं,
उसी पे ये दिल मरता हैं,
कितना समझाएं दिल को,
फिर भी नादानियाँ करता हैं,
दिन रात बस उसी के ख्यालों में,
बस अब ये खोया रहता हैं,
अब ना चैन हैं ना है दिल को करार,
हरदम मिलने को है ये बेक़रार,
अपना सब उसी पे है अब अर्पित,
प्यार उसी से ये करता हैं,
उसी पे अब ये मरता हैं ।

