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Nidhi Pathak

Romance

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Nidhi Pathak

Romance

कश्मकश

कश्मकश

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सोचता हूँ लिखने की कुछ खत तुम्हें आज भी

जब उफनता है ज़हन में यादों की तूफ़ान कभी

पर कुछ सोच के रुक जाता हूँ, थम जाता हूँ ये याद कर

अंग्रेजी मुझे आती नहीं और हिंदी तुम पढ़ सकती नहीं। 


यादें भी क्या रंग लाती हैं ना?

कभी हंसाती तो कभी रुलाती

कितने आंसू बह निकले कुछ हिसाब न पूछो

कभी कभी तंग हो जाता हूँ इनसे!


पर कड़वाहट भी तो एक स्वाद है ज़िन्दगी का 

वरना मिठास मर न जाएगी?


याद है मुझे वो दिन

जब कुछ पूछा था एक आस भर मन में

और तुमने एक मनमौजी बच्चे की तरह हंस कर

कितनी आसानी से कह दिया था


"ज़रूरी नहीं सब पलों को रिश्तों में कैद करना 

कुछ पल खुली हवा में जीते हैं 

ये तो वो सराय है जो रखेंगे महफूज़ हमें 

वरना बंदिशे तो गला घोंट देती हैं रूह का..."


सही कहा था तुमने शायद

आज उसी सराय में बैठां हूँ

तुम भी अक्सर आती होगी यहां

जब भीड़ में रूह छिलने लगती होगी।


चलो मिलें कभी फिर यहीं

अपनी अपनी बंदिशों के बोझ को बांटने

इसी उम्मीद पर एक खत लिखने की सोचता हूँ तुम्हें

पर अंग्रेज़ी मुझे आती नहीं और हिंदी तुम पढ़ सकती नहीं। 



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