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Nidhi Pathak

Tragedy

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Nidhi Pathak

Tragedy

अब बस करो

अब बस करो

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अब बस करो ये सबला

अबला का आलाप,

सिर्फ बोलने से कुछ नहीं होता,

ये तो समझते होंगे ना आप ?


जब सड़कों पर राह चलते हम पर

नज़रें गड़ाए रखते हो 

तब कहीं दिखता है कोई सबला रूप,

या सिर्फ हैवानियत को जपते हो ?


हमें देते हो नसीहतें,

और खुद आराम से सोते हो 

बेटी, माँ, स्त्री, महिला कहकर -

वाह ! क्या फिक्र का नाटक रचते हो। 


क्या छः और क्या साठ,

तुमने तो किसी को नहीं छोड़ा,

हमें ना पता था, कि

इतनी तक़लीफ़ होगी तुम्हें 

जैसे ही हमने बंधनों को तोड़ा। 


पर समझते कभी इंसान हमें,

तो कुछ बात बनती ना !

तुम तो बस कुचलने में

विश्वास रखते हो - बेवजह, बेगुनाह। 


हमसे सवाल ना पूछो,

हमें आँखें ना दिखाओ 

बड़ा समझते हो शुभचिंतक खुद को 

तो सीधे मैदान में छलांग लगाओ। 


उड़ा दो धज्जियां, चीर-चीर कर डालो 

मिटा दो हवस के सब शैतान

पर सच में कर पाओगे तुम ये,

जब तक रखते हो खोखला 

पौरुष अभिमान ?


हमें तो बड़ी आसानी से

देवी का रूप दे डाला,

अरे हमसे भी तो सुनो ज़रा,

क्या सोचते हैं हम तुम्हारे बारे में 


सिर्फ़ कायर और राक्षस

कहना काफी नहीं,

तुम हो मानवता के हत्यारे,

प्रकृति पर कलंक।


गया समय अब बातें करने का 

अपनी क़ौम पर कितना कालिख़ पोतोगे ?

बस करो अब, बस करो 

झूठ के खेतों में कितने

घड़ियाली आंसू जोतोगे ? 


उठना चाहते हो हमारी नज़रों में कभी,

तो उतार फेंको ये दोगलेपन की चादर 

आओ, चलो हमारे साथ अभी 

चकनाचूर करने उन नज़रों को, 


उस सोच को

जो पशु को भी

कर दे शर्मसार 

और मिटा दे इस

दुनिया का आधार। 


अब बस भी करो यार, 

कब तक रहोगे झूठ पर सवार ?


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