पुष्प का प्यार
पुष्प का प्यार
बाग में खिले पुष्प को देख मैं उस पर मोहित हो गया,
उसके पास गया और उसे तोड़ने की कोशिश करने लगा,
पुष्प ने आवाज़ दी मुझे तोड़ने क्यों आए हो,
मुझे अपने पौधे में ही रहने क्यों नहीं देते हो,
मैंने पुष्प को कहा तुम मेरे दिल को लुभा रही हो,
तुम्हें अपनी आग़ोश में लेने को बैचेन हो गया,
तेरी सुंदरता पुष्प मुझे तेरे ओर आने को विवश कर गया,
पुष्प मुस्कुरा के बोली मुझे भी तुम भा गए हो,
मेरे दिल में भी तुम्हीं सिर्फ तुम्हीं समाए हो,
पर क्या मुझे तोड़ लेने से तुम मुझे सदा अपने पास रख सकोगे,
मेरी ज़िंदगी बस चंद दिनों की ही हैं, मुझे ज़ीने दो,
तुम सचमुच अच्छे हो, मेरा ध्यान रखते हों,
मेरा भी मन तुम्हारी आग़ोश में सामने का हो रहा है,
पर पौधे में मेरे ज़िंदगी कुछ ज्यादा दिन का हो जाएगा,
तुम ही अपने दिल से पूछो क्या तुम मुझे ले पाओगे,
अपने साथ अपनी ज़िंदगी में कितने समय तक रख पाओगे,
मेरा दिल उससे प्यार करने लग गया था, मैं क्या करता,
मैंने कहा पुष्प से, तुम अपने पौधे में ही रहना,
रोज़ दूर से तेरा दीदार करता रहूँगा,
तेरे लिए अब रोज़ दुआएं करता रहूँगा,
तेरी खुशी मैं अपना ज़ीवन निसार करूँगा,
तेरी यादों के सहारे मैं अपनी आगे की ज़िंदगी भी गुज़ार दूँगा,
पुष्प तू सुंदर है, पुष्प तू बहुत ही प्यारी हैं,
तुझपे एक क्या सातों जन्म मैं कुर्बान कर दूँगा ।