बैरी सावन
बैरी सावन
सावन बरसे - सावन बरसे, मनवा पिया मिलन को तरसे
बैरन ये बारिश की बूंदें तन - मन में इक अगन लगाए रे
हूक उठे जब उर - आंगन में जल बिन मछली सी
तड़प रह जाऊँ
नैन अर्णव छलका जाए, हाय रे प्रीतम तुम क्यूँ ना आए।
करके वादा सावन का, क्यूँ वादा अपना तोड़ दिया,
बरखा की ठंडी फुहारों में मुझ को विरह में तड़पता
छोड़ दिया।
बादल गरजे, बिजुरी चमके, मनवा मोरा
धड़क - धड़क जाए, राह देखूं मैं अपने
पिया की कबहू आ के मोहे गरवा लगाए,
तुम बिन साजन में ऐसे तड़फू
जैसे जल बिन मीन ना रह पाए रे,
कोई जतन करो, आ के थाम लो मोहे,
जिया मचला जाए रे ।
बैरी सावन तू काहे आया अबहु मोरा सजन ना आ पाए रे,
लिख- लिख चिट्ठियाँ
भेजूं सजन को, कोई तो उनका भी सन्देशा लाए रे।
साजन मोरा उस पार, मैं इस पार,
बिन नाव के कौन दरिया पार कराए रे।
हाए करो कोई जतन, कोई तो पिया से दिओ मिलाए रे।

