इल्तिजा
इल्तिजा
उम्मीदें ही गुनहगार मेरी,
नाराज़गी ज़रा भी नहीं तुझसे !
दीवाना मैं हुआ ख़ामख़ाह,
हँस के तो तू, बोली सभी से !
झटक देना बालों को यूँ ही,
जो आदत तेरी
परवाना मैं हुआ तभी से !
जी लिया, अब जल गया हूँ,
तुझ को गले लगा कर ख़ुशी से !
बाक़ी न रख अब, याद भी मेरी,
बस मेरी, यह इल्तिजा तुझसे।