शिद्दत
शिद्दत
जितनी शिद्दत है दिल में मेरे आज,
उतनी ही कशिश उन आंखों में होगी।
जागता हूं मैं रातों में सितारों को देख,
उसे ख्वाबों में मेरी याद आती ही होगी।
ढूंढ लेता हूं फिजाओं में अक्स उसका,
अमा में वो भी चाँद को ताकती ही होगी।
रखकर सामने आईने को मेरी तरह ही,
क्या खुद को आईने में पाती ना होगी।
सुनती होगी बातें वो मेरी अनकही
तनहाई उसको भी तो सताती ही होगी,
दिल में होंगी उसके भी बातें बहुत सी,
पर बातें वो जुबां पे आती ना होंगी।
सोचता हूं इतनी बेकरारी जब है मुझ को,
फिर तो उसको भी नींद आती ना होगी।
हां बढ़ चला हूं मैं उस गली की जानिब,
जहां से हर रोज मुझ को बुलाती ही होगी।।

