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Deepa Jha

Romance

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Deepa Jha

Romance

दिल की पोटली

दिल की पोटली

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१. मुनासिब

हर ग़म ,हर ख़ुशी में नज़रें पलटती हैं जिसकी तरफ ,

उस सनम ने टह रना कभी मुनासीब ना जाना;

जिस राह पे हम करते रहे उनका इंतज़ार,

उस सनम ने वापिस वहाँ से गुज़रना मुनासिब ना जाना,

दुनिया के शोर में तन्हाई करती रही ख़ौफ़ज़दा ,

पर उस सनम ने साथ देना मुनासिब ना जाना।

२.क्या कभी ...

दूरियों ने तुमसे क्या किया,

रह रह के बदहाल -ऐ -दिल किया;

उसको बाहों में भर कर क्या याद तुमने हमको किया,

हर हंसी पे उसके क्या ख़याल हमको किया;

तेरी आँखों के नूर तो न हो सके हम ,

पर क्या हमारी यादों ने तुम्हारा दिल रोशन किया।

इसी शुबा में जीते -मरते रहे ,

की कभी क्या प्यार तुमने भी हमको किया!!

३. मंदिर का दीया

भीड़ में यूँ ही अकेले चलते रहे ,

नज़रें उठा किसी हमसफ़र को तकते रहे,

अपनी मुस्कुराहटों की रौशनी तले , तन्हाई की स्याही ढकते रहे,

तेरी ज़िन्दगी करेंगे रोशन, इसी आरज़ू में जलते रहे,

पर एक मंदिर में दिए की तरह , अकेले ही सिसकते रहे। 



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