दिल की पोटली
दिल की पोटली
१. मुनासिब
हर ग़म ,हर ख़ुशी में नज़रें पलटती हैं जिसकी तरफ ,
उस सनम ने टह रना कभी मुनासीब ना जाना;
जिस राह पे हम करते रहे उनका इंतज़ार,
उस सनम ने वापिस वहाँ से गुज़रना मुनासिब ना जाना,
दुनिया के शोर में तन्हाई करती रही ख़ौफ़ज़दा ,
पर उस सनम ने साथ देना मुनासिब ना जाना।
२.क्या कभी ...
दूरियों ने तुमसे क्या किया,
रह रह के बदहाल -ऐ -दिल किया;
उसको बाहों में भर कर क्या याद तुमने हमको किया,
हर हंसी पे उसके क्या ख़याल हमको किया;
तेरी आँखों के नूर तो न हो सके हम ,
पर क्या हमारी यादों ने तुम्हारा दिल रोशन किया।
इसी शुबा में जीते -मरते रहे ,
की कभी क्या प्यार तुमने भी हमको किया!!
३. मंदिर का दीया
भीड़ में यूँ ही अकेले चलते रहे ,
नज़रें उठा किसी हमसफ़र को तकते रहे,
अपनी मुस्कुराहटों की रौशनी तले , तन्हाई की स्याही ढकते रहे,
तेरी ज़िन्दगी करेंगे रोशन, इसी आरज़ू में जलते रहे,
पर एक मंदिर में दिए की तरह , अकेले ही सिसकते रहे।

