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निशा परमार

Abstract Romance

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निशा परमार

Abstract Romance

चंद्रमोहन चाँदनी

चंद्रमोहन चाँदनी

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कैसे छिटक गई

चंद्रमोहन चाँदनी

आज तो चाँद का

आगमन ही नहीं है

कौन कर गया

धरा को इतनी गुलाबी

आज तो चाँद ने चाँदनी को

छुआ ही नहीं है।

तारों के झुरमुट से आती

हास्य भरी आवाज

नभ से चमकते

कुछ हास्य दन्त

कौन कर रहा है

इतना हास्य उद्दंड

आज तो किसी ने कोई

लतीफा सुनाया ही नही है

ये देखो ठिठुरतें पुष्प पुंज

रात की रानी के

मंसूबे है सर्द हवा के झोंके से

बतियाने के

कौन कर गया है

मध्य रात्रि में भोर

आज तो नेत्र अभी तक

निद्रा में डूबे ही नही हैं !

 


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