दिल को बयान कैसे करूँ मैं
दिल को बयान कैसे करूँ मैं
बदल गये हैं हालत,
बदले से हैं ज़ज्बात।
कम हो गयी है बातें
ना के बराबर है मुलाकातें।
झूठी लगती है अब तेरी बातें,
तो ऐसे में क्या करूँ मैं,
हर रोज़ किस से प्यार करूँ मैं।
मुलाकात हो ऐसी,
दिल में बस जय पहले जैसी।
दिल की बात दिल ही जाने
तुमसे मिलने के अब भी कर्ता है बहाने।
बदले हुऐ हैं ज़ज्बात,
नहीं रही अब पहले वालीं बात,
कैसे हो गये हैं ये हालत,
क्या है यह मेरी एक नई शुरुआत।
तन्हाई है ऐसी,
जो ना थी पहले जैसी,
तो अब क्या करूँ मैं,
दिल को बयां कैसे करूँ मैं।
हर बात उसकी याद दिलाती हैं,
ख़ुशी वाले पालो में भी खूब रुलाती है।
मुस्कुराना सीखा था उनसे,
गुनगुनाते थे उनके साथ गाने,
मिलने के थे हजार बहाने।
हस्ती थी मैं उनके साथ,
रोने वालीं करते नहीं थे कभी कोई बात,
चाहे कैसे भी हो हालत,
फिर कैसे बदल गए उनके ज़ज्बात।
बातों में कट जाते थे दिन और रात,
वक़्त रहता था हमारे साथ,
लेकिन अब नहीं होती है कोई बात ,
क्यूंकि बदल गए हैं हालत।
बिना बात के हस्ती थी मैं,
हर वक़्त उनके सामने नखरे करती थी मैं,
था उसमें अलग ही मज़ा,
लेकिन लगती है अब वो एक सजा।
मिलना चाहता है दिल उनसे एक बार,
कर लेगा बात हजार बार।
दिमाग ने तो साफ़ कर दिया है,
उनका रास्ता छोड़ दिया है,
अपने दिल को तोड़ दिया है।
लेकिन आसान नहीं है ये बात,
क्यूंकि जोड़े हुऐ हैं उनसे ज़ज्बात,
दिमाग की सुन ले तो बदल जायेगे हालत,
लेकिन क्या बदल जायेगे यादों की मुलाकात।
यादों ने क्या रंग पिरोया है,
इश्क के लाल रंग को खून से सजाया है।
दिल को कैसे बयां करूँ मैं,
क्या हर मुलाकात को याद कर के मरू मैं।
वक़्त नहीं रहता एक जैसा,
ज़ख्म नहीं रहता वैसा का वैसा,
जैसे बदले हैं हालत,
बदल जायेगे मेरे दिल के ज़ज्बात।
ना मरना है ऐसे,
ना डरना है वैसे,
क्यूंकि वक़्त कभी ना कभी देगा मेरा साथ,
बदल जायेगे मेरे भी हालत।
