दिल का रोग
दिल का रोग
चैन और सुकून गवाया है,
मैंने दिल का रोग लगाया है।
चेहरा छुपा है मेरी नज़रों में,
मैंने प्यार का रोग लगाया है।
चंद लम्हे की मुलाक़ात में,
मैंने उसको अब अपनाया है।
भुला दूँ कैसे उस दिलरुबा को अपनी,
जिसने मुझे अपनी ज़िंदगानी में अपनाया है।
उसके जिस्म की खुश्बू को,
सीने में अपने मैंने बसाया है।
दूर होकर मुझसे कैसे रहे सकेगी वो,
मैंने अपनी रूह को उसमे ऐसे बसाया है।
रख लिया उसे मैंने दिल में अपने,
आज फिर उससे मिलने को जी चाहा है।
आरज़ू है उसे ले जाऊँ इस जहाँ से दूर,
उसकी हसरतों में क़ुर्बान होने को जी चाहा है।।

