दिल का रिश्ता
दिल का रिश्ता
मेरा और उसका ये रिश्ता
बचपन से उसे प्यार मैं करता
जवानी में ये गहरा हो गया
उसे पता मैं उसपे मरता।
दिल उस का भी धड़क रहा था
उसने भी हाँ थी कर दी
थोड़ा उसको वक़्त लगा पर
प्यार की उसने हामी भर दी।
प्यार के दो पंछी थे हम
आसमान में उड़ने वाले
जाने किसकी नजर लगी
छा गए थे बादल काले।
उसका एक्सीडेंट हुआ
वो हस्पताल में लेटी थी
मैं जब पहुंचा मिलने उसको
आंसू भर भर रोती थी।
डॉक्टर ने था मुझको बोला
अब कभी उठ न पायेगी वो
बाकी तो भगवन ही जाने
नहीं लगता ठीक हो जाएगी वो।
दुखी थी वो और मुझसे बोली
साथ मैं अब न चल पाऊंगी
हम दोनों का ख़तम ये रिश्ता
सब कुछ छोड़ चली जाऊंगी।
मैं बोला कि मान लो तुम
हुआ होता ये मेरे साथ
क्या तुम ऐसे ही चली जाती
छोड़ देती क्या मेरा हाथ?
दिल से अपना मान चुके हैं
ये रिश्ता खूबसूरत है
बंधन है ये जीवन भर का
इसे फेरों की नहीं जरूरत है।