दीदी
दीदी
ये सिर्फ संबोधन,
नहीं प्यार है,
दीदी तुम माँ तो नहीं,
पर उससे कम भी नहीं।
जानती हूँ,
मेरे दुःख में,
तुम्हारी आँखें भी भर,
आती है,
तुम्हें लगता है,
तुम ऐसा क्या कर दो,
कि मैं दुखी न रहूँ।
और मेरी ख़ुशी में भी तुम,
हमेशा खुश हो जाती हो,
जाने तुम इतनी अच्छी,
कैसे हो लेती हो हर बार,
लगातार !
तुम्हारे पिटारे में सिर्फ,
प्यार नहीं सलाह और,
हर परेशानी का हल,
भी होता है,
वो भी टोकरी भर के।
हर सलाह इस विश्वास,
से देती हो की,
अगर मैं मान लूँ तो,
सारी तकलीफ़ दूर,
तुम्हारा इसमें,
स्वार्थ भी होता है,
और वो है मेरा सुख।
बचपन से लेकर,
आज तक,
बस तुमने दिया है,
कभी कुछ लेने की,
चाह नहीं की,
एक बात बताना तुम किस,
मिट्टी की बनी हो ?
मिट्टी चाहे जो हो,
जिस कुम्हार ने,
तुम्हें गढ़ा है,
उसने पानी की जगह,
प्यार मिलाया है,
जानती हो तुम्हारे बिना,
मैं अपनी ज़िन्दगी,
सोच भी नहीं सकती,
दीदी तुम माँ तो नहीं,
पर उससे कम भी नहीं।