दीदार के एहसास
दीदार के एहसास
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न कोई राग है गुफ्तगू के सरगोशी में
न कोई आग है दिल के गर्म जोशी में
एक बाग़ ऐसी....जो कायल है दीदार के एहसासों में
कभी बैठे तन्हा तो गुम है आँखों के मदहोशी में
सुनी बातों का अंदाज़ बुने खामोशी में
नजर की गुस्ताखी अब भी रहते बेहोशी में
वो कशिश भूले से भूलते नहीं चाह ऐसी बे-वफ़ा में
सदियों का एहसास बसे सदाएँ दिल के आगोशी में