“ मैं कौन हूं ”
“ मैं कौन हूं ”
हर सफ़र पे ज़िंदगी का जवाब कुछ नया खेल जाता
सभी ओर सुनने देखने में कुछ और सवाल सम्भल जाता
राज़ वाली कोई बात नहीं शायद मुझमें कोई साज़ नहीं
अनसुनी हर पहलू, हालातों के एक समान अंदाज़ नहीं
कहते सब ग़ुस्सेवर रोष मिज़ाज तो कहते बेरहम शख़्स
महज़ ख़ामोश दरिया में भी तूफां भरी बारिश का अक़्श
कभी लब से इतनी हंसी मानो बलखाती हवा की प्यास
कभी आंखों से इतनी शांत मानो जीते जी कहीं की लाश
मनमर्जियां मिज़ाज बेहद गर सांसों की घुटन बेतलब
कुदरत, गाने की आशिक़ इन नज़ारों कि छुअन बेसबब
किसी की प्यारी दुलारी दिलरुबा कुछ ऐसी खासियत भी
मुस्तक़िल कारवां तो कुछ नहीं, न जानूं क्या असलियत थी
हर्फ़-गह क़ल्ब में इससे रफ़्ता-रफ़्ता दिल्लगी की आशा
काँफी की प्रेमिका गर मोहब्बत चाय की प्रेमी से बेतहाशा
एक रूह की बहत कुछ गर जवाबों में कुछ बसर नहीं
कहीं लोगों के सवालात ‘सिरमौर’ कौन दर्द की खबर नहीं
