तर बतर हो जाए हर आह भी के सुकून मिले कातिल को मेरे तर बतर हो जाए हर आह भी के सुकून मिले कातिल को मेरे
ओ पर्वत दिगारा ! इतनी करुण पुकारें, तुझे सुनायी दे रही क्यूं नहीं हैं।। ओ पर्वत दिगारा ! इतनी करुण पुकारें, तुझे सुनायी दे रही क्यूं नहीं हैं।।
याद इस छोटी बीज को कर लो। बीज कहाँ मुश्किलों से हैं घबराते। याद इस छोटी बीज को कर लो। बीज कहाँ मुश्किलों से हैं घबराते।
कभी आंखों से इतनी शांत मानो जीते जी कहीं की लाश कभी आंखों से इतनी शांत मानो जीते जी कहीं की लाश