धुंधलाहट
धुंधलाहट
पुराने संदूक में एक तस्वीर मिली,
रंग थे फीके तस्वीर धुंधली हो चुकी थी,
धूल को समेटा,
तस्वीर को टकटकी लगा घंटों तक देखा,
मेरा गुमशुदा बचपन मेरे हाथों में था,
यादों की बौछार में मैं थोड़ा थोड़ा भीग रहा था,
कच्ची मिट्टी सा बचपन,
हर फिक्र से दूर मौज मस्ती से भरा वो बचपन,
बचपन कहीं पीछे छूट गया,
और मैं इस सफ़र में आगे बड़ गया,
दादी नानी की वो कहानी,
कागज़ की नाव और बरखा का पानी,
वो दोस्त वो आंगन सब बिछड़ गया,
मेरे सर से ईश्वर का साया छट गया,
कुदरत के कहर के आगे मैं मौन था,
मेरी यादें मेरा सबकुछ धूमिल हो चुका था,
मेरा बचपन भी उसी रोज़ दम तोड़ गया,
हर रिश्ता मेरा हाथ छोड़ मुझे अनाथ कर गया,
आंखों में शिकायत लिए मैं चल पड़ा,
शहर की एक गली में आ रुका,
और आंखें पोंछ कर अपना कल लिखने बैठ गया,
मेरी हिम्मत मेरी सिहाई बनी और बीता कल मेरी कलम बन गया,
मुझे रुख करना है फिर उन गलियों का,
जीना है एक बार फिर वो गुज़रा लम्हा,
शहर से गांव तक जाती वो सड़क लंबी होती गई….
मेरे बचपन की तस्वीर और धुंधली होती गई,....
एक रोज़ जीवन के अंतिम अध्याय को लिख मैं इस किताब को पूर्ण कर बैठूंगा,
अपनी मुट्ठी में सब बंद कर मैं भी एक यात्रा को निकल बैठूंगा।।
