धुआँ
धुआँ
मेरे शहर की गलियों का,
ये दृश्य जरा कुछ आम सा है,
एक शोर चिखता है, चारों ओर,
आम आदमी परेशान सा है।
एक ज़हरीली लहर हैं ,जो धुआँ कहलाती है,
फैलती है जब वायु में, सब दूषित कर जाती है।
आज के हालातों से, कौन वाकिफ नहीं है यहाँ
सब के प्राणों का घातक बन गया है, धुआँ।।
घर से हुई शुरूआत इसकी,
घर में है, ईंधन का धुआँ
बाहर निकले जरा जो हम,
मिल जायेगा, वाहनों का धुआँ,
जब चले बस्ती से आगे,
दिखा कल कारखानो का धुआँ
धुआँ जिसे ऊँची चिमनियां इसे
दूर आसमान तक ले जाती है,
एक गुब्बारा बनता है, धुँए का,
पूरा वातावरण दूषित कर जाती है।
परिस्थिति ऐसी दुष्कर हैं,
यहाँ, आदमी ही आदमी का दुश्मन है,
रखते हैं, स्वस्थ ज्ञान सभी,
सारा ज्ञान, आदतों के आगे निष्फल है।
जरूरत है, आज हम अपने कर्तव्य को पहचाने
समझे इसके दुष्परिणामों को, और
परिस्थिति में सुधार करें ।।