धुआँ -धुआँ सी जिंदगी
धुआँ -धुआँ सी जिंदगी
वक्त दौड़ता रहा और प्यार रेत की तरह हाथों से फिसलता रहा,
तू बिना देखे सामने से निकलती रही ये सिलसिला चलता रहा,
मैं हमेशा पूछता रहा पर तुम्हारा आगे से न कोई जवाब मिला,
आवाज न आई कोई मैं प्यार के मद्धम आंच में बस तपता रहा,
उस आने वाले कल से, मैं आज तुमसे एक उम्मीद लेकर बैठा हूँ,
तुम्हारी याद आई पर तुम ना आए मैं तुम्हारा इंतजार करता रहा ,
आवाज लगा रहा इधर -उधर तेरे इंतजार में कब से मैं बैठा रहा,
तुम मिलोगे कभी न कभी इसी उम्मीद की खातिर में चलता रहा,
तेरी मिलने की उम्मीद में जाने कितने साल और महीने गुजर गए,
दूर आसमान में चांद को देखकर हर रातों को करवटें बदलता रहा,
सागर की उठती हुई लहरों ने मुझे किनारे पर लाकर यूँ छोड़ दिया,
और मैं थक कर सागर के उस किनारे में भी न जाने क्यों डूबता रहा,
मेरे सब्र का बांध पल पल आंखों से छलकता रहा तुम्हें जाता देख,
शायद वो रुककर एक नजर मुझे देखेगी मैं बस यही सोचता रहा,
जब भी मिले एकांत में हम हर बार तुमने एक मजबूरी बता दी मुझे,
और अब तो तुम्हारी हर मजबूरी को भी मैं बस प्यार समझता रहा ,
मैं एक कोरा कागज और तुम मेरे लिए अक्षर की स्याही होती गई,
कुछ पन्ने जिंदगी के मुड़ गए और मैं तुम्हें यूँ ही हर पल पढ़ता रहा I

