धरती की माटी
धरती की माटी
कितनी जान गवाँ दी हमने, झंड़े के सम्मान में
वीर शहीदों ने सिर काटे, भारत के "उत्थान" में
गीदड़ धमकी देने वाले, रट ले आज जुबान मे
इस "धरती" की माटी ही काफी, सारे पाकिस्तान में
हैरत" मे सब दुश्मनगण है, भारत देश है शान में
समझौते, सुलह भी समझे, हिंसा व अपमान में
पथरावों से दूर रहा है, मानवता ही ध्यान में
गद्दारो को धूल चटाना, भी रखता पहिचान मेंइ
इस धरती की माटी ही काफी, सारे पाकिस्तान में
मेल मिलाप व भाईंचारा, ही रखता प्रधान में
शांति,सौहार्द और प्रीति होती, भारत की लगान में
"ईश्वर" की करूणा व स्नेह, मिलता है वरदान में
धर्म जाति का भेंद नहीं, सब है एकसमान में
इस धरती की माटी ही काफी, सारे पाकिस्तान में
सभी धर्म का स्वागत करना, रहता स्वाभिमान में
निष्ठा और एकता से है, भारत "दीप्तिमान" में
नाश,प्रलय हरगिज नही मिलती, देश के बखान में
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संयम,कर्मठता है ताकत, इस ऊँची उड़ान में
इस धरती की माटी ही काफी, सारे पाकिस्तान में
शिक्षा,चिकित्सा खेलजगत, थामा जो कमान में
भारत का परचम लहराया,कोई नही अंजान में
बिखेरी हर ओंर "चाँदनी", हसरत दी मुस्कान में
मेहमान भी इस पावन भूमि में , होता मेजबान में
इस धरती की माटी ही काफी,सारे पाकिस्तान में
"वन",भूधर और नदियाँ होती,सुन्दरता जहाँन में
भारत में तीनो की पूजा,तीनो समाधान में
नई नई तकनीकें मिलती, विघालय, संस्थान में
रोजगार के बेहतर अवसर, भारत के विधान में
इस धरती की माटी ही काफी, सारे पाकिस्तान मे
दोष,बुराई "निर्गत" होती, बढते गुण की खान में
मौलाना और धर्मगुरू,नेकी देते ज्ञान में
चैन सुकूँ व तृप्ति होती, लोगो के फरमान में
भारत मे ही लगता,मानो हम ठहरे निर्वाण में
इस धरती की माटी ही काफी, सारे पाकिस्तान में।