धिक्कार है !
धिक्कार है !
ये तस्वीर बड़ी भयानक है,
डराने वाली है,
चेताने वाली है,
इसे तो नहीं चुना था हमने,
ऐसी आजादी तो हमारी
कल्पनाओं में नहीं थी,
ऐसे लोकतंत्र को तो हमने
नहीं दिया था समर्थन,
हमारा आइना तो दूसरा था,
क्यूँ संविधान में छिपे शब्द
किसी को समझ में नहीं आते,
किसी एक को ही जीताने,
आगे लाने की बात न थी,
हमने तो एक साथ चलने की ही सोची थी,
कमजोरों को सहारा देने की ठानी थीं,
पर धोखा,
फरेब, छल लिया गया है हमें,
शर्म से अभी भी झुकी नहीं क्या नजरें !
भजन गा रहीं हैं, प्रभु भक्ति के,
रास्ता रोकने को एक वर का,
मुझे तो भगवान से घृणा करने को
मजबूर करती हैं,
ऐसी तस्वीरें,
किस भगवान की भक्ति है ये !
कौन सा धर्म है ?
जो इतना अलगाववादी है ,
जो सहन नहीं कर सकता,
किसी का जलसा, महज इसलिए,
तथाकथित उनकी जाति तुमसे नीची है,
धिक्कार ! है ऐसे धर्म पर
धिक्कार है ! ऐसे भगवान पर
धिक्कार है ! ऐसे भक्तों पर
धिक्कार है ! ऐसे मूक दर्शकों पर,
अगर ये तस्वीर पीड़ित करती है,
तो आवाज दो,
विरोध करो, रोक दो,
नहीं बर्दाशत कर सकता इंसान इसको,
तुम्हारा हँसना–किसी कौम पर
आजाद घूमना– शोषण करकर
अलगाव का समर्थन
छदम श्रेष्टतावादी होकर
पूरी मानवता को शर्मसार करता है,
मुझे चिंता मानवता की है,
ये शतरंज की बिसात नहीं,
जहाँ सभी प्यादों,
मोहरों को गिराकर
रानी को बचाना होता है,
ये जिंदगी की बिसात है
जहाँ, हर गिरे को उठाकर ही,
मानव के अस्तित्व को
बचाया जा सकता है,
मानवता को
बचाया जा सकता है ,
भविष्य से लड़ा जा
सकता है एक होकर।