दहेज़
दहेज़
समाज की ये कैसी कुरीतियां हैं
लक्ष्मी का मान दिया बेटियों को शास्त्रों ने
उसी लक्ष्मी स्वरुप बेटी को समाज चंद रुपयों में तोलता है,
हर बेटी है बाबुल के दिल का टुकड़ा
फिर भी कन्यादान से पहले
ये समाज दहेज़ को मुंह खोलता है,
अरे बंद करो ये लेन-देन का मसला
बेटी नही है किसी के हाथ का खिलौना
कि कहीं गुड़िया की तरह सजा के रखा
तो कहीं समाज उसके अस्तित्व को ही तोड़ता-मरोड़ता है,
समाज की ये कैसी नीतियां हैं
बहू मान के जिसे आग में झोंकते हो
वो भी तो किसी की बेटियां हैं !