वही राम है वही रहीम है
वही राम है वही रहीम है

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वही राम है वही रहीम है
अलग-अलग धर्मों की चलाई किसने ये मुहिम है
जो आग है तेरे सीने में
वही अदा है मेरे जीने में
हैं सभी जुड़े इंसानियत के एक ही जाल में
फिर क्यों हैं फंसे बैर-भाव के जंजाल में
न तुझे कुछ हासिल है न मुझे कुछ है पाना
जीवन के रैन-बसेरे बाद सब यहीं है छोड़ जाना
फिर क्यों जहर नफरत का हवाओं में घोल रखा है
मैं बड़ा तू छोटा इंसानियत को खुदगर्जी में तोल रखा है!