माना कि...
माना कि...


माना कि तुम आदमी हो
घर के मुखिया हमारे जीवन के सारथी हो
मगर अबला नारी समझ के हमारा तिरस्कार करो
ये हमको गवारा नहीं है,
माना कि हमने सौंपे हैं तुमको अपने सारे अधिकार
मगर हमारी इच्छाओ हमारी भावनाओं को तोड़ो
ये हक तुम्हारा नहीं है,
माना कि हमने बांधे हैं तुमसे अपने रिश्तों के सभी सार
मगर जो लाँघ जाये अपनी सारी मर्यादाओं को
तुमसे ऐसा रिश्ता भी मुझे प्यारा नहीं है,
माना कि एक अकेली औरत को ताना देता है जमाना
मगर वो जमाना भी तुमसे कम नहीं
जो अत्याचार से घिरी औरत का सहारा नहीं है ।