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ananya rai

Tragedy

3  

ananya rai

Tragedy

दहेज एक अभिशाप

दहेज एक अभिशाप

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इसी दहेज के अत्याचार से परेशान होकर इक बेटी का पत्र उसके पिता के नाम :-


कहती है रो रोकर वो नन्हीं कली रोना , मचलना ज़िद करना ,

बाबा!!  मैं तो हूँ अब भूल चुकी।।

माँ देख आँखों में आँसू मेरे दुलारती थी मुझको जैसे

वो तो कहती भी नहीं बहु ये आँसू कैसे???


है नहीं उन्हें तनिक फ़ुरसत पसारे जो प्यार का आँचल बिसारने को फेहरिश्त

बाबा!! तुम तो कहते थे सास भी माँ जैसी होती है फिर समझती क्यों नहीं वेदना वोमेरे अंतर्मन की।।

क्यो बोलती है वो कटु वचन जो सायक सी है मुझको चुभती।।

बाबा!!अब तो भूल गयी हूँ मैं जीनाखुशियाँ भी होकर रुष्ठ चली।।

अब तो कोयले सी हो गयी है जिंदगी मेरी डसती अमावस सी निशाचरी।।

बाबा

मैं हूँ थकी खड़ी इस शरीर और इस मन से भी

बाबा!!जिसको तुम कहते थे लक्ष्मी हैं उसको कहते ये अभागिनी।।

बाबा क्यों नहीं दिखते उनको ये चोट मेरे जब पकड़ कलाई खींचते चहुँ ओर मुझे।

बाबा है नहीं जरा इंसानियत इनमें दौलत के भूखे सारे हैं,कुत्ते के आगे गोश्त वाले इनपर फबते किस्से सारे हैं ।

बाबा चिंतित मत होना,

बोझ बन कंधे पर वापस अब न आऊँगीलाख करें ये बदसलुकियाँ मुझसे डोली चढ़ आई थी अर्थी पर ही जाऊँगी।।


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