कोई कहकशाँ मेरी जुस्तजू संवारती नहीं बौनी हसरतों की कोई हद नहीं कोई कहकशाँ मेरी जुस्तजू संवारती नहीं बौनी हसरतों की कोई हद नहीं
बाबा क्यों नहीं दिखते उनको ये चोट मेरे जब पकड़ कलाई खींचते चहुँ ओर मुझे। बाबा क्यों नहीं दिखते उनको ये चोट मेरे जब पकड़ कलाई खींचते चहुँ ओर मुझे।