देश प्रेम एक नशा
देश प्रेम एक नशा
एक शाम नशे की छाई खुमारी थी
खड़ी सामने माँ भारती बेचारी थी
क्षत-विक्षत, झुकी कमर, बड़ी कमजोर
आँखों में छाई लाचारी थी।
दिवस प्रेम का, छाया शबाब
हाथों में हमारे था गुलाब
उसे आलिंगन करने को बेताब
पर वह तो निकला गोला बारूद का नवाब।
हमारे घर में आग लगा गया
अपने ही दामन पर दाग लगा गया
खूनी होली का फाग लगा गया
उठ जाग, तुझे चिता गया।
अब तू होश की ना बात कर
ना दिन, ना तू रात कर
नशे में तू काम कर
देश के दुश्मनों का काम तमाम कर।
बो गया वो जो नफरत का बीज
अब उस पर तू किसी भी कीमत में न रीझ
उठा तू अपनी शमशीर
सीना उसका दें तू चीर।
ना सुन तू कोई भी पुकार
त्राहि-त्राहि, ना कोई चित्कार
अब तू ना कोई नरमी दिखा
उसकी बेशर्मी का उसे सबक सिखा।
पहल हम कभी करते नहीं
अमन-चैन किसी का भी हरते नहीं
लेकिन आँख दिखाएं कोई हमारे घर में
उसे किसी भी कीमत में बक्शते नहीं।
अब खत्म हुआ सारा खेल
प्रेम-प्यार, वार्ता, भाईचारा सब हुआ फेल
अमन-चैन, नियम-कानून वो तोड़ गया
आत्मा माँ की झिंझोड़ गया
हिंसा, वैर-विरोध वो पाल गया
अहिंसा के पुजारी को साल गया।
उसका तू विनाश कर
सर्वमूल बीज का नाश कर।
अभिमन्यु की मिसाल बन
दुश्मनों के चक्रों का साल बन
महाराणा प्रताप की तलवार बन
शिवा सा रणनीतिकार बन।
याद करवा उसे तू इतिहास दें
पृथ्वीराज चौहान जैसी मात दें
जब कभी उसने हमारे घर में आँख उठाई हैं
फाँकी हैं हार की धूल, और मुँह की खाई हैं।
नशा तेरा उतरने ना पाए
कदम तेरे ठिठकने न पाए
बस मुँह तोड़ उसे जवाब दें
एक के बदले कीमत बेहिसाब लें।