देश जल रहा है
देश जल रहा है


यह देश जल रहा है
क्या आपको खल रहा है?
जी नहीं, आग से नहीं
जल रहा है
पानी से भी नहीं,
हाँ-हाँ, आँख के पानी
मर जाने से,
देश जल रहा है
लूट कर इज्ज़त खुले आम
मार दिया जा रहा है
उसके ही द्वारा, जिसने
लिया था व्रत, रक्षा का
और उसकी सुरक्षा का
उसके द्वारा मार दिए जाने से
देश जल रहा है
क्या आपको खल रहा है?
अब सवाल न बचा है
नैतिकता का
और न ही,
खून के पानी बन जाने का
बचा है जिसकी नसों में
लाल रूधिर
वह तिल-तिल कर मर है
उसका देश जल रहा है
यह उसे खल रहा है
बौद्धिकता निशाने पर है, अब
बुद्धजीवी के सर पर तलवार है
गर्दन झुकी तो कट जाएगी
तनी तो छिल जाएगी
वह भी जिये जा रहा है
ऊहापोह में,
कैसे देश चले जा रहा है?
आखिर कब तलक
सर पर हो रहे हमले
को सहता रहेगा
कब तक बाईं भुजा के भार को
उठा रखेगा, बिना दाहिनी के
सहयोग के
पैर के ज़ख्मों से उबरा भी है
क्या यह?
कि दिल की धमनियाँ
फड़फड़ाने लगीं हैं
फेल हो न जाये हार्ट इसका
बेटी की इज़्ज़त लुट जाने से
कानून के हाथ छोटे हो जाने से
नेता जी के अभिमान बढ़ जाने से
डॉक्टर के निष्क्रीय हो जाने से
वह जला न ले ख़ुद को कहीं
आग से
क्योंकि यह अंदर ही अंदर
जल रहा है
क्या तब भी आपको नहीं
खल रहा है
आपका देश जल रहा है।