देहरी का दीया
देहरी का दीया
कभी-कभी,
यह दीया ,
कितने कमाल है,
करता,
मंदिर में जलता,
तो श्रद्धा से,
भगवान को खुश,
कर,
घर की,
किस्मत रोशन कर देता,
कभी उदास,
पलों से,
अंधेरे पन्नों को,
जलाकर खाक,
ये कर देता,
दीये की किस्मत में तो,
फिर भी जलना,
ही लिखा है,
पर यह हमेशा,
अपनी बाती,
के संग ही है ,
जलता,
दीया और बाती,
जैसे,
कभी जुदा नहीं हो सकते,
वैसे ही,
हमारा घर,
और,
खुशियों का नाता है,
हमारा घर,
और,
उसकी खुशियां,
जुदा ना हो पाए,
इस प्रार्थना में,
तुलसी पर एक दीया ,
हर रोज जलता है,
देहरी पर जल कर,
दीया ,
बुरी शक्तियों,
को अंदर,
आने से रोक है, देता,
शाम ढले,
जब जलता दीया ,
तो घर को,
खुशियों से ,
संपन्न कर देता है,
धन - धान्य,
लक्ष्मी उपासक,
प्रसन्न चित्त है,
मेरे तो,
घर का दीया ,
हर परिस्थिति में,
जलता रहे,
भगवान से करती हूं ,
मैं हर दिन,
हर पल,
यही ,
दुआ,
दिनों दिन जगमगाए,
रोशन हो,
मेरी,
देहरी का दीया ।।