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Mayank Kumar

Classics

3  

Mayank Kumar

Classics

डर

डर

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डर लगता है जज्बात से

डर लगता है उम्मीद से

डर लगता है बे नसीबी से

डर लगता है तसल्लियों से।


डर लगता है

अपने ही साथियों से

डर लगता है उमंग से

क्यों ? डर लगता है

चलते दृढ़ पथों से।


डर लगता हैं हालात से

पूछो डर से !

क्या खुद डर लगता

उसे अपने से भी

अजीब है यह डर

क्यों लगता हम सबों को डर !


जब खुद नहीं डरता डर !

तो क्यों हमें लगता है डर ?

शायद कायरता हैं डर

शायद जीवन का अंग है डर।


शायद असफलता है डर

शायद कुछ करने की आस है डर

होना चाहिए भी "डर"

क्योंकि आलस्य को भगाता है डर।


दुखों में कुछ करने को उकसा हैं डर

अगर डर न होता

फिर वाल्मीकि न होते

डर न होता

फिर आदर्श न होते !


डर न होता

फिर रामायण,

गीता, कुरान न होते !


हां तो कठोर बन

लड़ो डर से क्योंकि

संभालना जीना सीखाता ये डर !


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