डर लगता है
डर लगता है
आज जो बीत गया सुख चैन से
कल के आने से डर लगता है
जाने कैसा होगा वो कल
डर के साए में गुजर रहा है हर पल
कौन जाने कब कोई बिछड़ जाए
कब हालात किसकेबिगड़ जाए,
मौत की हवा,
बेचारगी का मंजर है
दर्द ही दर्द है सब और
किसी के पास नहीं है मरहम
जिनके अपने चिता में जल गए
बाकी सब चिंता में
पल पल जल रहे हैं
बच्चों की परवरिश
रोटी की फिक्र में
जीते जी मर रहे हैं
पत्थर की मूरत वाला भी
पत्थर हो गया सा लगता है
मरना शायद आसान हो
जीने से डर लगता है।