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AMIT SAGAR

Abstract

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AMIT SAGAR

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धर्म के धंधे

धर्म के धंधे

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दंगो पर दंगा कर बैठे

लोग ना जाने क्या कर बैठे

कोइ कहता है कमल बड़ा है

कोइ कहता हेै साइकिल

कोइ कहता है गीता बड़ी है

कोइ कहता बाइबिल

गुरुद्वारे के द्वार बड़े हों

या हो मस्जिद उँची

मन को अपने गिरा के नीचे

बाते करें बहुँची

अपने अपने धर्म की पीठ

हर कोइ है ठोक लेता

आौर दुजे के धर्म ज्ञान को

भाड़ चुल्हे मे झोंक है देता

ना जाने इतिहास की बातें

और ना जाने यह गीता

समझ के अपने को विद्वान

हर जगह करे फजीता

ये बनके बातो के मन्त्री

करते हे बादल में छेद

खुद पर पाप का मैल चढ़ा है

और कहते गन्दे हेैं वेद!


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