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Khushboo Pathak

Abstract

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Khushboo Pathak

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मुसाफ़िर

मुसाफ़िर

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 मैं यूं ही आगे बढ़ता रहा

 मुसाफिरों का कारवां चलता रहा

 हजारों मुश्किलें आई राहों पर 

आंधी तूफान साथ लायी

 हवा का रुख भी कुछ बदल सा गया

 मौसम ने भी ली अंगड़ाई 

पर मैंने उफ तक न की 

और चलता रहा अपने आशियाने की ओर 

परेशानियों का सामना करता रहा 

 मुश्किलों से जूझता रहा 

पीछे मुड़कर ना देखा कभी 

 बस मिलो पैदल चलता रहा

 पांव में छाले पड़ गए 

शरीर में थकन सी आ गई 

बेहोशी का आलम सा छा गया 

तब भी खुद को संभाला 

 फासलों को मिटाने की कोशिश करता रहा 

अपनी मंजिल की ओर बढ़ता रहा 

मैं मुसाफिर चलता रहा ।


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