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Awadhesh Uttrakhandi

Abstract

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Awadhesh Uttrakhandi

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आँसू और वो

आँसू और वो

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रुकते रुकते ये आँसू मेरे,तन को भिगो गया

अहसास हुआ कि अचानक आयी तुम और यादों का मौसम दे गए

और यादों के पल में याद आया वो हमारे प्रीत का सफर।

और वहीं याद आया वो पीड़ा दायक बिछोह का मंजर।

रुकते रुकते ये आँसू मेरे,तन को भिगो गए।

अहसास हुआ कि अचानक आयी तुम और यादों का मौसम दे गए।

दिन वहीं समय वहीं, बस चारो ओर देखा तो तुम नहीं।

जिस्म के जाने से एक खलिश रह गयी,

भूला था जिसे मैं याद ने परछाई बनकर प्यार का तराना आज दोहरा गयी।

कल भी था किस्सा वहीं, आज भी है हिस्सा वहीं, बस देखा तो तुम कहि नहीं।

न होकर भी तुम कहि आसपास फिर वहीं सुंगंध दे गए।

न होकर भी जीवन मे मेरे, तन को महक गए।

और यादों के अंबार देके हर पल तड़पा गए।


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