ना अगर चाहो
ना अगर चाहो
अपनी जिंदगी के गम, छुपाना ना अगर चाहो
इशारा ही एक कर दो दिखाना ना अगर चाहो
अगर चलने का जज्बा हो, लगे आसान हर मंजिल
और लगता दूर है मंजिल, जाना ना अगर चाहो
कोई भी गम छुपाना ना अपनों से कम से कम
भला कैसे कोई जाने , बताना ना अगर चाहो
जो भी बोझ हैं दिल पर वो होंगे कैसे फिर हल्के
अपने भावों को मन के , जताना ना अगर चाहो
बड़ा ही मोल दिल से दिल के नातों का यहां पर है
रहेगा मोल फिर कैसे, निभाना ना अगर चाहो
बनाने से तो दुश्मन भी यहां बन जाते हैं अपने
बनेंगे दोस्त फिर कैसे, बनाना ना अगर चाहो
पुकारो दिल से जो मुझको तो पल में चला आऊं
मगर कैसे मैं तब आऊं बुलाना ना अगर चाहो
है मुमकिन निकालो गर, सभी यादों को दिल से
मगर ये जा न पाएंगी, भुलाना ना अगर चाहो।