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Vikram Kumar

Inspirational

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Vikram Kumar

Inspirational

पतन के रास्ते पर मैं

पतन के रास्ते पर मैं

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था मानवता की पूजा कर चमन के रास्ते पर मैं

मन को छोड़कर आया था धन के रास्ते पर मैं

जब से आदमी से कद्र ज्यादा दौलत की

तब से ही चला आया पतन के रास्ते पर मैं


बहुत कुछ खो दिया मैंने, महज थोड़ा सा पाने में

कि मैं उलझा रहा हरदम, दिखावे को दिखाने में

कोई जज्बात भी न थे, न कोई भाव था मुझमें

खोया मैं तो था एहसासों के कीमत लगाने में

कभी चलना न चाहा अपनेपन के रास्ते पर मैं

तब से ही चला आया पतन के रास्ते पर मैं


सदा संपन्न लोगों के ही मैं तो पास रहता था

मुझे धनवान बनना है यही आभास रहता था

लाचारी और मजबूरी किसी की न समझता था

सारे दायरों, बंधन को मैं बकवास कहता था

बस चलता ही जाता था मन के रास्ते पर मैं

तब से ही चला आया पतन के रास्ते पर मैं


किया जो करना न था और लगाया आग पानी में

भलाई कर नहीं पाया कोई मैं जिंदगानी में

बना निर्दयी और निष्ठुर माया-मोह में पड़कर

दया का भाव कोई था नहीं मेरी कहानी में

ईर्ष्या हावी थी और था जलन के रास्ते पर मैं

तब से ही चला आया पतन के रास्ते पर मैं



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