पलायन करके मजदूर न बन
पलायन करके मजदूर न बन
एक पवन है एक धरती
एक भारत एक भारती
एक देश एक गगन
पलायन करके मजदूर न बन।।
तेरे जीवन में है अँधेरा थाती
चुन जाति में श्रेष्ठ जाति
चुन धरम में श्रेष्ठ धरम
पलायन करके मजदूर न बन।।
जा पर अपना चोला बदल ले
समाज के दस्तूर खोखला बदल दे
जो तेरे रग रग भरते है चुभन
पलायन करके मजदूर न बन ।।
तेरे अपने यहां ताने कसते हैं
तेरे आसपास बंधन बसते हैं
तोड़ ये बंधन अपने अंतर्मन
पलायन करके मजदूर न बन ।।
वही सूरज धरती वहीं पवन
वही हाथ पैर मेरे तेरे तन
वही हाव भाव तेरे मेरे मन
पलायन करके मजदूर न बन ।।
अपने मेहनत का तू मोल कर
किस्मत बदल केवल पेट न भर
शिक्षित पीढ़ी हो कर लगन
पलायन करके मजदूर न बन ।।
रुपया नहीं किसी एक का जिन्न
अपने कमाई का हक से छीन
गणतंत्र का कर निर्लोभ गठन
पलायन करके मजदुर न बन ।।
देख अनन्त धरती आसमान खुला है
किसी का आंगन, न मौत भुला है
जहां सुकून मिले वहीं है वतन
पलायन करके मजदूर न बन।।