ढूंढ़ती हूँ
ढूंढ़ती हूँ
ढूंंढ़ती हूँ
अपने आप को
अपने एहसास को
अपने अंदर उठे हर सवाल को
ढूंढ़ती हूँ
अपनी कमियों को
अपनी हंसी को
अपनी चुप्पी के पीछे छुपे हर राज़ को
ढूंढ़ती हूँ
अपनी जिंदगी को
अपनी कलम को
अपनी एहमियत को
ढूंढ़ती हूँ
अपने अंदर शायर को
अपने लिखने के अंदाज़ को
अपने अंदर छुपे अल्फाजों को।

