Shailendra Kumar Shukla

Action Classics

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Shailendra Kumar Shukla

Action Classics

ढलती हूई उम्र

ढलती हूई उम्र

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ढलती हूई उम्र का अफसाना क्या है 

कल से क्या हो, ये ठिकाना क्या है 

आतिशी करते हैं, सभी यहाँ बेफिकर 

जन्नत नसीब होने का पेमाना क्या है !


जोड़ते हैँ किसलिये, किसको सताकर 

मोड़ते हैँ किसलिये, मुझको बुलाकर 

हम तो समझते हैँ, रब, हकीकत इतनी 

ओढ़ते हैँ खुद, अपनी चादर छिपाकर !


क्या मिलेगा दुख देकर, आत्मा तो अपनी है 

क्या मिलेगा सुख लेकर,खात्मा तो होनी है 

इतना समझ आते ही, हम तो उठ जाते हैं 

क्या मिलेगा रुख लेकर, अंतरात्मा तो अपनी है !


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