ढह जाता लोकतंत्र का खंभा
ढह जाता लोकतंत्र का खंभा
ढह जाता आज लोकतंत्र का
एक अविचल खंभा
रह जाता मिट्टी का ढेर
और रह जाता सर नंगा।
सुनसान हो जाती बस्ती
हो जाता एक अंधेरा
धुंध निशाचर कर लेते
फिर से बस्ती पर पहरा।।
जो भी हो जैसा भी हो
ये घात बहुत है गहरा
अमन चैन ये फूल की क्यारी
बन जाते सब सहरा।।
कोटि-कोटि प्रणाम तुम्हें
हे जग के पालनहारी
लूटते लूटते तुमने यूं
भारत की लाज बचा ली।