STORYMIRROR

अमित प्रेमशंकर

Tragedy Crime Others

3  

अमित प्रेमशंकर

Tragedy Crime Others

ढह जाता लोकतंत्र का खंभा

ढह जाता लोकतंत्र का खंभा

1 min
186

ढह जाता आज लोकतंत्र का

एक अविचल खंभा

रह जाता मिट्टी का ढेर

और रह जाता सर नंगा।‌

सुनसान हो जाती बस्ती

हो जाता एक अंधेरा

धुंध निशाचर कर लेते

फिर से बस्ती पर पहरा।।

जो भी हो जैसा भी हो

ये घात बहुत है गहरा

अमन चैन ये फूल की क्यारी

बन जाते सब सहरा।।

कोटि-कोटि प्रणाम तुम्हें

हे जग के पालनहारी

लूटते लूटते तुमने यूं

भारत की लाज बचा ली।

  


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy