चुप्पी
चुप्पी
उसकी चुप्पी मुझे परेशान करती है
बिना कुछ कहे मुझसे सवाल करती है
अनदेखा करके आगे बढ़ता जाता हूँ
उन तीखे सवालों से बचना चाहता हूँ
उस चुप्पी से और खौफ लगने लगा है
भागता हूँ उन नजरों के सवालों से
जो नजरें मेरे वजूद के आरपार होती है
पाता हूँ जकड़ा हुआ खुद को बेड़ियों में
जानकर भी उसकी बेगुनाही को
मैं अनदेखा करता जाता हूँ
क्योंकि सियासत का तकाज़ा यही है
जहाँ बेगुनाहों को कुर्बान किया जाता है
मेरी बेरुखी से हैरान होती है वह चुप्पी
वह मेरी बेहूदगी का सामना करती है
वह चुप्पी तीखे सवाल करती जाती है
वह चुप्पी मुझे परेशान करती रहती है!
