चंद्र और चंद्रिका
चंद्र और चंद्रिका
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उस अकेली रात में
चमक रहा था चंद्र
छिटक रही थी चंद्रिका
वायु चले मंद मंद
एक रेतीले टीले पर
बैठे थे दो पंछी
कर रहे थे गुफ्तगू
अपने अपने दिल की
पहुंच रही थीं मोहब्बत
अपनी मंजिल की दहलीज पर
हो रहा था नवसृजन सपनों का
नयनों के कपाट पर
उस अकेली रात में
चमक रहा था चंद्र
छिटक रही थी चंद्रिका
वायु चले मंद मंद!