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V. Aaradhyaa

Romance Fantasy

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V. Aaradhyaa

Romance Fantasy

चली नदियाँ सागर की ओर

चली नदियाँ सागर की ओर

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कलकल नदियाँ बहती चली यूँ सागर की ओर, 

मंत्र-मुग्ध हरदम करे, मधुरम उसका यह शोर !


धरा हरित होने लगी अब नदी बहे जिस राह,

शहर-गाँव बसते गए सरिता का देख प्रवाह !


पर्वत से निकले जो यह नदी बहे अनवरत धार,

शांति रहती वहीं जहां मिलता प्रकृति का प्यार !


पीते जल सरिता का सभी रखना इतना ध्यान,

इसमें ना मिले अशुद्धि ना हो धरा का अपमान ! 


सूर्यदेव ढाते ज़ब कहर, वसुधा पर हो प्रकोप,

त्राहि-त्राहि मचने लगे सरिता होती जाती लोप !


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