चले आना तुम
चले आना तुम
जो एहसास जगे
किसी रोज़ तो
चले आना ।
जो लगे डर फिर से
खोने का मुझे तो
चले आना ।।
जो दर्द हो गर
किसी बात से
उस दर्द को मुझ तक
हो पहुॅंचाना तो
चले आना ।।
जो मंज़िल हो सामने
मगर फिर भी
राह भटक जाओ तो
चले आना ।।
जो दिल्लगी के दौर में
बिखर जाओ
किसी मोड़ पर,
दिल तोड़कर गर
मिले सुकूँ तो
चले आना ।।
जो कहनी हो तमाम बातें
वो कुछ अपनी तो
कुछ अपनो की, मगर
जो, ना सुने तुम्हे कोई तो
चले आना ।।
लफ्ज़ो में जो ना
समझ सके तुम्हे कोई,
अपनी ख़ामोशी को गर
हो सुनना तुम्हे, तो
चले आना ।।
ग़ज़लों में जिसका कभी
हर शब करते थे ज़िकर
वो छोड़ जाए तन्हा तो
चले आना ।।
जो पल कुछ पुराने
याद आ जाए तुम्हे,
भूले बिसरे से एहसास
इक पल को भी
मुस्कुरा दे तुम्हे,
बेधड़क हो दिल की
धड़क में रखना मुझे तो
चले आना ।
हाँ चले आना तुम ।।।