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Suresh Koundal

Abstract Inspirational

4.3  

Suresh Koundal

Abstract Inspirational

चिरप्रतीक्षा का अंत

चिरप्रतीक्षा का अंत

4 mins
315


वनवास के समय दशरथ नंदन प्रभु श्री राम ने अपने अनुज सौमित्र (लक्ष्मण) सहित माता शबरी का आतिथ्य स्वीकार किया था और उसके द्वारा प्रेम पूर्वक दिए जूठे बैर भी खाए जिसका वर्णन रामायण में मिलता हैं। इस से प्रसन्न होकर उन्होंने माता शबरी को परमधाम जाने का वरदान दिया। माता शबरी और प्रभु श्री राम के बीच बर्तालाप के कुछ इस तरह रहा होगा -


बड़ी देर तक बिना पलकें झपकाए उस और सुपुरुष को निहारते रहने के बाद बुजुर्ग भीलनी के मुंह से स्वर फूट पड़े " हे राम आ गए तुम में कब से तुम्हारी राह देख रही थी। राम मुस्कुराए और कहने लगे यहां तो आना ही था मां।

हे राम आप नही जानते मैं आपकी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम्हारा जन्म भी नही हुआ था मैं तो यह भी नहीं जानती थी कि तुम कब आओगे और कहाँ से आओगे? बस इतना पता था कि कोई युग पुरुष आएगा आएगा जो मेरे बरसों के इंतज़ार का अंत करेगा।

तब राम बोले " हे माँ ! मेरा आपके आश्रम में पहुंचना तथा आपसे मिलने भी मेरे जन्म से पूर्व तय हो गया था "।

भाव विभोर हो कर शबरी बोली " एक बात बताऊँ प्रभु ! भक्ति के दो भाव होते हैं , पहला ‘मर्कट भाव’, और दूसरा ‘मार्जार भाव’।" 

उदाहरणतः ”बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है, ताकि गिरे न... उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है, और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। दिन रात उसकी आराधना करता है। ” इस भाव को मर्कट भाव की संज्ञा दी जाती है। पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया।

”मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति थी, जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ है न, वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी, और माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है। मैं भी निश्चिन्त थी कि तुम आओगे ही, तुम्हें क्या पकड़ना। " (मार्जार भाव)

शबरी का भाव देख कर राम मुस्कुरा कर रह गए।

शबरी पुनः कहने लगी " मैं सोच रही हूँ बुराई में भी कुछ न कुछ अच्छाई छिपी होती है। “कहाँ सुदूर उत्तर के तुम और कहाँ घोर दक्षिण में मैं”। तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य और मैं वन की भीलनी। यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहाँ से आते ?”

शबरी के मन के भाव जान कर श्री राम बोले, हे माँ भ्रम में न पड़ो मां " क्या मैं यहां रावण का वध करने आया हूँ ये काम तो मेरा अनुज लक्ष्मण अपने पांव से बाण चला कर भी कर सकता है। मैं तो कोसों पैदल चल कर मां शबरी से मिलने आया हूँ ताकि हज़ारों वर्षों बाद, जब कोई भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे ,तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे, कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय श्री राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था।

राम वन में इसलिए आया है, ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं। राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया हैं माँ।

माता सबरी एकटक राम को निहारती रहीं। राम ने फिर कहा ," राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता ! “राम की यात्रा प्रारंभ हुई है, भविष्य के आदर्श की स्थापना के लिए।" राम निकला है, ताकि “ विश्व को संदेश दे सके कि माँ की अवांछनीय इच्छओं को भी पूरा करना ही 'राम' होना है।" राम निकला है, कि ताकि “भारत को सीख दे सके कि किसी सीता के अपमान का दण्ड असभ्य रावण के पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होता है।" राम आया है ताकि “भारत को बता सके कि अन्याय का अंत करना ही धर्म है”

राम आया है, ताकि “युगों को सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है, कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाय, और खर-दूषणों का घमंड तोड़ा जाय”। राम आया है, ताकि “युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी शबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं।"

शबरी की आँखों में जल भर आया और बात बदलते हुए राम से पूछा , "बेर खाओगे राम” ?

राम मुस्कुराए और बोले , "बिना खाये जाऊंगा भी नहीं मां"

शबरी अपनी कुटिया से एक टोकरी में बेर ले कर आई और राम के समक्ष रख दिया। बेर दांतों से कटे हुए, झूठे प्रतीत हो रहे थे। ये देख कर लक्ष्मण ने तो भौहैं सिकोड़ लीं और राम की प्रतिक्रिया जानने उनकी तरफ देखने लगे।

राम मां शबरी की ओर देखते हुए बड़े चाव और प्यार से वो जूठे बेर खाये जा रहे थे।

उन्हें निहारती मां शबरी राम से पूछने लगी "बेर मीठे हैं न प्रभु?"

ये सुन कर राम बोले "यहाँ आ कर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ मां ! बस इतना समझ रहा हूँ, कि यही अमृत है।"

शबरी मुस्कुराईं और बोलीं, "तुम धन्य हो प्रभु , सचमुच में तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो, राम।"



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