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छवि चिंतन

छवि चिंतन

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स्पंदन श्वाँसों का तुम ही मेरे जीवन की प्रत्याशा हो।

रसिया छलिया लिलहारी सखा तुम ग्वालिन गोप की आशा हो।।

तुम नटनागर हो रणछोड लला मैं भोली सखी बृषभान लली,

तेरी मुरली को सुर श्याम प्रखर तुम सत्य भुवन अभिलाषा हो।।


तेरे नैन रसीले कजरारे मुरकी अलकैं मतवारी लगैं।

तेरी टेढी नज़र तेरो टेढो वपु तेरी छवि श्यामल सुरवारी लगै।।

तेरी धड़कन ज्यों पायल रुनझुन भई सौत मुरलिया साँवरिया,

तेरे बिन सुन राधा दुखियारी रसराज प्रखर बनवारी लगै।।



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