चेहरा
चेहरा
आज, वही हंसता हुआ चेहरा, याद आता है।
हंसते-हंसते, जाने क्या कह जाता है!
मैंने तुम्हारी आंखों में वफ़ा देखी है,
मेरे प्रति छुपी, प्रेम की हया देखी है।
नज़रें, जैसे कुछ कह रही थी मुझसे,
मेरे लिए तड़पती हैं, कह रही थी मुझसे।
मैं क्या करूं, तुम कुछ चाहती हो क्या?
मुझमें समाकर, मेरा होना चाहती हो क्या?
रूप तुम्हारा, परी सा, आंखें तुम्हारी झील सी,
मन में बस प्रेम ही प्रेम, हंसी खिलाती फूल सी।
इतना सुंदर सनम, क्या बन पाएगा हमदम!
या फिर कोई तीर लगेगा, फिर देगा कोई ज़खम।
न जाने, क्यों इतना प्रेम करने लगा हूं,
क्या मैं भी, तेरे दिल में उतरने लगा हूं?

