चाय और तेरा साथ
चाय और तेरा साथ
वो थोड़ी देर का साथ तुम्हारा
रोज चाय पर घर आना
मेरे दिल को महंगा पड़ा
चाय के पत्ती सी चाहत गहरी हो गई
धीरे धीरे चीनी सी मिठास घुल गई
कम्बख्त..ये सब हुआ कब और कैसे
मुझको खबर ना हुई
अफ़सोस मगर अदरक सी कड़वाहट भी थी तेरे दिल में
और तू फीका हो गया
काँच के कप सा दिल तोड़ गया
अब मुझे चाय की तलब भी नहीं होती....
गम भुलाने को कुछ और पीना होगा
तेरे बिना भी तो जीना ही होगा

