चाँदनी
चाँदनी


रात में चाँदनी की कली थी खिली
आज भंवरे से कोई कमलिनी मिली
स्वातियों की घटाए भी ये छाये रही
प्यासे चातक को बूंदे गवारा हुयी
ख़्वाब में था तड़पता मिलन के लिए
दिल में उसके ज़रा सा सहारा हुई
दोष देना भी क्या यार बागों को है
डालियाँ न बहारों में फूली फली
सावनी आँखों में अश्के बरसात थी
दिल में उर्मी उमंगों की सौगात थी
दिल में अपने मिलन की जलाकर दिये
इश्क के हम अंधेरे हटाते रहे
हम तेरे सूखे तालाबों के हैं कमल
रा
त रानी और बेला कि तू है कली
बन के गुलाब सी तू महकती रहे
बागों में पंछियों सी चहकती रहे
तेरे ख़ुशियों की महफ़िल ये आँखें रही
बन के जो अश्रुओं सी छलकती रही
न दिलों में थी अपने कोई वेदना
जैसे हों ब्रम्ह से जीव जा ये मिली
आज संयोग है की मिले आसमां
आंचलों में जमी पे खिले आसमां
न गवारा हो कोई शर्मो हया
आज धरती से जब ये मिले आसमां
रंग में सिहरो कि उठती रहे उर्मियाँ
बीच लहरों में अपनी ये किश्ती चली